रस के प्रकार एवं उदहारण
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श्रृंगार रस – (क ) संयोग : –
इसमे नायक नायिका के संयोग की स्थित्ति का वर्णन रहता है l
उदाहरण –
“ बतरस लालच लाल की मुरली धरी लुकाय l
सोह करे , भोहनी हसे ,दें कहे नट जाये “ll
(ख ) वियोग : – नायक – नायिका के विछुड़ने या दूर देश में रहने की स्थति का वर्णन ,वियोग श्रृंगार कहलाता है l
उदाहरण –
“आखो में प्रियमूर्ति थी ,भूले थे सब भोग l
हुआ योग से भी अधिक ,उसका विषम वियोग ll”
2.हास्य रस –
जहां किसी व्यक्ति की अटपटी वाणी एवं “आकृति ,चेष्टा आदि का वर्णन हो जिसे सुनकर या देखकर हँसी उत्पन्न होती है वहा हास्य रस होता है l”
उदाहरण –
“जब धूमधाम से जाती है बारात किसी की सज धज कर l
मन करता धक्का दे दूल्हे को ,जा वेठु घोड़े पर l
सपने में ही मुझको अपनी शादी होती दिखती है l
वरमाला ले दुल्हन बड़ती ,बस नीद तभी खुलजाती है l”
3.करुण रस –
प्रिय वस्तु के नाश और अनिष्ट की प्राप्ति से जो चित में जो विफलता आती है वहाँ करुण रस होता है l
उदाहरण –
“अभी तो मुकुट बधा था माथ,हुए कल ही हल्दी के हाथ l
खुले भी न थे लाज के बोल,खिले भी न चुम्बन –शून्य कपोल l
हाय ! रुक गया यही संसार , बना सिन्दूर अंगार ll”
4.रोद्र रस –
सह्रदय के ह्रदय में स्थित क्रोध नामक स्थायी भाब का जब विभाव ,अनुभाव् और संचारी भाव से सयोग होता है तब वह रोद्र रस होता है l
उदाहरण –
“श्री कृष्ण के सुन वचन अर्जुन क्रोध से जलने लगे l
सब शोक अपना भूल कर , करतल युगल मलने लगे ll”
5.वीर रस –
वीर रस में उत्साह स्थायी भाव होता है l युद्ध में विपक्षी को देखकर ,ओजस्वी वीर घोषणाए या वीर गीत सुनकर यह रस जाग्रत होता है l
उदाहरण –
“वह खून कहो किस मतलब का ,जिसमे उबाल का नाम नहीं l
वह खून कहो किस मतलब का ,आ सके देश के काम नही ll”
6.भयानक रस –
भय नामक स्थायी भाव का जब विभाव , अनुभाव से सयोंग होता है तब भयानक रस होता है l
उदाहरण –
“एक ओर अजगरहि लखि ,एक ओर म्र्गराय l
विकल वटोही बीच ही परयो मूर्छा खाय ll “
7.वीभत्स रस – जहा दुर्गन्ध युक्त वस्तुओ ,चर्बी ,रुधिर आदि का ऐसा वर्णन हो जिसमे मन में घ्रणl उत्पन्न हो वहा वीभत्स रस होता है l
उदाहरण –
“सिर पर बैठयो काग ,आंख दोउ खात निकारत l
खीचत जीभही स्यार ,अतिहि आनन्द उर धारत ll “
8.अद्भुत रस –
जहां अलोकिक व् आश्चर्य जनक वस्तुओया घटनाओ को देखकर जो विस्मय भाव ह्रदय में उत्पन्न होता है वहा अद्भुत रस होता है l
उदाहरण –
“अखिल भुबन चर–अचर सब हरि मुख में लखि मातु l
चकित भई गद गद वचन , विकसित द्रग पुलकातु ll”
9.शान्त रस –
संसार की अनिश्चतता एवं दुःख की अधिकता को देखकर ह्रदय में विरक्ति उत्पन्न होती है l इस प्रकार के वर्णनों में शान्त रस होता है l
उदाहरण –
“चलती चाकी देखकर , दिया कबीरा रोय l
दुइ पाटन के बीच में , साबुत वचा न कोय ll”
10.वात्सल्य रस –
इसमे शिशु के प्रति प्रेम ,स्नेह ,दुलार आदि का प्रमुखता से वर्णन किया जाता है वहां वात्सल्य रस होता है l
उदाहरण –
‘ धूरी भरे अति सोभित स्यामजू ,तैसी बनी सिर सुन्दर चोटी ll’