संविधान की प्रस्तावना

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Today we are going to tell you about  our constitution  introduction  (संविधान की प्रस्तावना   ) so friends read and share it if you like . for more information read it this blogs .संविधान की प्रस्तावना

 

प्रस्तावना :- प्रस्तावना हमारे संप्रभु प्रजातांत्रिक गणतंत्र की जन्मकुंडली है के एम मुंशी संविधान में 120000  शब्द है अभी तक प्रस्तावना में केवल एक बार संशोधन किया गया है ।  प्रस्तावना को अमेरिकी संविधान से लिया गया है  । संविधान की प्रस्तावना 

हम भारत के लोग भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न समाजवादी पंथनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को।

सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक न्याय कोमा विचार अभिव्यक्ति कोमा विश्वास धर्म और उपासना की स्वतंत्रता प्रतिष्ठा और अवसर की समानता प्राप्त कराने के लिए

तथा इन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता व अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्पित होकर अपनी इस संविधान सभा में आज दिनांक 26 नवंबर 1949 ईसवी मिती मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष सप्तमी संवत 2006 विक्रमी को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत कोमा अधिनियमित और आत्मा समर्पित करते हैं ।

बीरूबारी यूनियन बनाम भारत संघ 1960 के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा था की प्रस्तावना संविधान का अंग नहीं है इसलिए इस में परिवर्तन नहीं किया जा सकता है । 

जबकि केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य 1973 के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बेरुबारी यूनियन मामले में दिए गए अपने निर्णय को पलट दिया और कहा कि प्रस्तावना संविधान का एक भाग है उसमें संशोधन परिवर्तन किया जा सकता है लेकिन संविधान के मूल ढांचे में कोई परिवर्तन नहीं किया जा सकता । 

 

42 वें संविधान संशोधन के तहत 1976 में समाजवादी पंथनिरपेक्ष और अखंडता शब्द को प्रस्तावना में जोड़ा गया  । 

 

संविधान का दर्शन :-         संविधान की प्रस्तावना के विभिन्न तत्व या दर्शन बिंदु निम्न है  ।

१. हम भारत के लोग :-     हम भारत के लोग अर्थात यह सम्मेलन भारत के लोगों द्वारा निर्देशित या चयनित लोगों के माध्यम से बनाया गया है । 

२. संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न :-  संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न अर्थात भारत अपने आंतरिक और बाहरी मामले में पूर्णता स्वतंत्र है यह किसी भी अन्य देश पर निर्भर नहीं होगा । 

३. समाजवादी :- समाजवाद अर्थात भारत में संपत्ति का केंद्रीय कारण रोका जाएगा और उत्पादन के साधनों पर राज देश का स्वामित्व स्थापित करने का प्रयास किया जाएगा यस ना कुछ बनाम भारत संघ के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि समाजवाद का मूल अर्थ कमजोर वर्ग और कर्म करो के जीवन स्तर को ऊंचा उठाना तथा उनके लिए जन्म से मृत्यु तक सामाजिक सुरक्षा की गारंटी लेना है  । 

अतः समाजवाद का अर्थ शोषण से मुक्ति है यह राजकीय समाजवाद और मार्क्सवाद से लिया गया है जिस का झुकाव गांधीवादी समाजवाद की ओर है यह गांधीवाद और मार्क्सवाद का अनोखा मिश्रण है  । 

 

४. पंथनिरपेक्ष:- पंथनिरपेक्ष अर्थात देश का कोई राजकीय धर्म नहीं होगा और सभी धर्मों को राज्य द्वारा समान आदर दिया जाएगा संविधान में पंथनिरपेक्ष शब्द की व्याख्या भी स्पष्ट नहीं है  । 

 

५. लोकतांत्रिक :- लोकतांत्रिक अर्थात देश का शासन जनता के द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों के माध्यम से चलाया जाएगा  । 

 

६. गणतंत्र :– गणतंत्र अर्थात देश का सर्वोच्च पदाधिकारी निर्वाचन व्यवस्था के माध्यम से चुना जाएगा और कोई भी पद वंशानुगत नहीं होगा  ।  

संविधान की प्रस्तावना

संविधान की प्रस्तावना

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संविधान का दर्शन