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श्राद्ध करने वाले मनुष्य होते है सौभाग्यशाली
पितरों के लिए श्रद्धा एवं कृतज्ञता प्रकट करने वाले को कोई निमित्त बनाना पड़ता है। यह निमित्त है श्राद्ध। पितरों के लिए कृतज्ञता के इन भावों को स्थिर रखना हमारी संस्कृति की महानता को प्रकट करता है।
देवस्मृति के अनुसार- श्राद्ध करने की इच्छा करने वाला व्यक्ति परम सौभाग्य पाता है।
श्रद्धा से किए श्राद्ध से पितर प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद देते हैं, ताकि उनके वंशजों के भविष्य की राह सुगम हो। जीवित बुजुर्गों और गुरुजनों के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए उनकी अनेक प्रकार से सेवा-पूजा तथा संतुष्टि की जा सकती है, परंतु पितरों के लिए श्रद्धा एवं कृतज्ञता प्रकट करने वाले को कोई निमित्त बनाना पड़ता है। यह निमित्त है श्राद्ध।
पितरों के लिए कृतज्ञता के इन भावों को स्थिर रखना हमारी संस्कृति की महानता को ही प्रकट करता है। उन पितरों के सत्कार के लिए हिंदू धर्म में वर्ष में 16 दिन का समय अलग निकाला गया है। पितृ-भक्ति का इससे उज्ज्वल आदर्श और कहीं मिलना कठिन है।
गरुड़ पुराण के अनुसार – पितृ पूजन से संतुष्ट होकर पितर मनुष्यों के लिए आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टि, बल, वैभव, पशु, सुख, धन और धान्य देते हैं।
मार्कण्डेय पुराण के अनुसार – श्राद्ध से तृप्त होकर पितृगण श्राद्धकर्ता को दीर्घायु, संतति, धन, विद्या सुख, राज्य, स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करते हैं।
ब्रह्मपुराण के अनुसार – जो व्यक्ति शाक के द्वारा भी श्रद्धा-भक्ति से श्राद्ध करता है, उसके कुल में कोई भी दुखी नहीं होता।
देवस्मृति के अनुसार – श्राद्ध की इच्छा करने वाला प्राणी निरोगी, स्वस्थ, दीर्घायु, योग्य संतति वाला, धनी तथा धनोपार्जक होता है। श्राद्ध करने वाला मनुष्य विविध शुभ लोकों और पूर्ण लक्ष्मी की प्राप्ति करता है।
श्राद्ध का विधान – हिंदू-शास्त्रों के अनुसार मृत्यु होने पर मनुष्य की जीवात्मा चंद्रलोक की तरफ जाती है और ऊंची उठकर पितृ लोक में पहुंचती है। इन मृतात्माओं को अपने नियत स्थान तक पहुंचने की शक्ति प्रदान करने के लिए पिंडदान और श्राद्ध का विधान है।
छोटा सा यज्ञ करने पर उसकी दिव्यगंध व भावना समस्त संसार के प्राणियों को लाभ पहुंचाती है। इसी प्रकार कृतज्ञता की भावना प्रकट करने के लिए किया हुआ श्राद्ध समस्त प्राणियों में शांतिमयी सद्भावना की लहरें पहुंचाता है। ये सूक्ष्म भाव-तरंगें तृप्तिकारक और आनन्ददायक होती हैं। सद्भावना की तरंगें जीवित मृत सभी को तृप्त करती हैं, परन्तु अधिकांश भाग उन्हीं को पहुंचता है, जिनके लिए वह श्राद्ध विशेष प्रकार से किया गया है। यज्ञ में आहुति दी गयी सामग्री जल कर वहीं खाक हो गयी, यह सत्य है, पर यह असत्य है कि इस यज्ञ या तर्पण से किसी का कुछ लाभ नहीं हुआ। धार्मिक कर्मकांड स्वयं अपने आप में कोई बहुत बड़ा महत्व नहीं रखते। महत्वपूर्ण तो वे भावनाएं हैं, जो उन अनुष्ठानों के पीछे काम करती हैं।