ग्वालियर के ऐतिहासिक स्थल

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Today we are going to tell you  ग्वालियर के ऐतिहासिक स्थल so friends if you  like  read and share it

 

ग्वालियर के ऐतिहासिक स्थल

 

मुरार: पहले यह सैन्य क्षेत्र हुआ करता था, जिसे मिलिट्री ऑफिसर्स रेजिडेंशियल एरिया रिजर्व्ड (M.O.R.A.R.) कहा जाता था और संक्षेप में मोरार। मोरार शब्द का लोप होकर मुरार हो गया।

 

थाटीपुर: रियासत काल में यहाँ सेना के सरकारी आवास थे, जिस का नाम थर्टी फोर लांसर था। आज़ादी के बाद यह आवास मध्य प्रदेश शासन के अधीन आ गए, जिसे थर्टी फोर की जगह थाटीपुर कहा गया।  

 

सहस्त्रबाहु मंदिर या सासबहू का मंदिर : ग्वालियर दुर्ग पर इस मंदिर के बारे में मान्यता है की यह सहत्रबाहु अर्थात हजार भुजाओं वाले भगवन विष्णु को समर्पित है। बाद में धीरे-धीरे सासबहू का मंदिर कहा जाने लगा।

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गोरखी: पुराने रजिस्ट्रार ऑफिस से गजराराजा स्कूल तक सिंधियावंश ने रहने का स्थान बनाया था। यही उनकी कुल देवी गोराक्षी का मंदिर बनाया गया। बाद में यह गोरखी बन गई।

 

पिछड़ी ड्योढ़ी: स्टेट टाइम में महल बनने से पहले सफ़ेद झंडा गाड़ा जाता था। जब महल बना तो इसके पीछे की ड्योढ़ी और बाद में पिछड़ी ड्योढ़ी कहलाने लगी।

 

तेली का मंदिर: इसका निर्माण ८ वी शताब्दी गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य के सबसे प्रतापी शासक गुर्जर सम्राट मिहिरभोज के शासन काल में हुआ  था , गुर्जर राजा के सेनापति तेल्प ने दुर्ग पर दक्षिण और उत्तर भारतीय शैली का मंदिर बनवाया था, जिसे तेल्प का मंदिर कहा जाता था। आज इसे तेली का मंदिर कहा जाता है।

    

 

पान पत्ते की गोठ: पूना की मराठा सेना जब पानीपत युद्ध से पराजित होकर लौट रही थी, तब उसने यहीं अपना डेरा डाल लिया। पहले इसे पानीपत की गोठ कहा जाता था। बाद में यह पान पत्ते की गोठ हो गई।

 

डफरिन सराय: १८ वी शतदि में यहां कचहरी लगाई जाती थी। यहां ग्वालियर अंचल के करीब ८०० लोगों को लार्ड डफरिन ने फांसी की सजा सुनाई थी, इसी के चलते इसे डफरिन सराय कहा जाता है।

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